मोहब्बत जानते हो?” जब कोई मुझसे पूछता है, मैं सोच में पड़ जाती हूँ, अपने अतीत और वर्तमान के पहलुओं पर, गौर करते हुए कहती हूँ कि – “हाँ, जानती हूँ मोहब्बत, उसके हसीं पल, इक दूजे में खोए रहना, वो वक़्त का थम जाना, बिना कहे सब समझ लेना, नोंक झोंक, ईर्ष्या, उसके दर्द, उनकी पीड़ा, दिलों का जुड़ना, बेवफ़ा होना और उस बेवफ़ाई के डर से गलतियाँ करना, अपनी मोहब्बत को तार-तार कर देना एक झूठ से, और बिखेर कर रख देना उस महीन शहद में डूबे लम्हें को जिस लम्हे का हमने, सदियों इन्तेज़ार किया है, सब जानती हूँ मैं। कहते हैं, लोग प्यार में झूठ नहीं कहते, जनाब! झूठ कहते हैं वो, जो कहते हैं हम प्यार में झूठ नहीं कहते। ये किताब और उसमें लिखी हर कविता के, अपने अलग पहलू हैं मोहब्बत के, जिसे लिखना मेरी मज़बूरी नहीं थी मेरा सुकूं था। इस किताब है हर वो पहलू आपको देखने व पढ़ने मिलेगा जो इश्क़ /प्रेम /मोहब्बत में होते हैं। जैसे किसी इश्क़ में चोट खाए हुए व्यक्ती से दोबारा पूछा जाए तो उसका ज़वाब पढ़िए इन पंक्तियों में – "दीमक लगी है, उस कोने पर देखो जहां इश्क लिखा था." या फिर किसी टूटे सपनें का व्याख्यान हो – "आज कुछ अल्फाज़ मेरे गलीचे में रखे मिले, कुछ बिखरे मोती की तरह तो कुछ टूटे सपनों की मानिंद". कहानी थोड़ी लंबी है और शायद वाक्या थोड़ा पुराना लेकिन सोचती हूँ, शब्दों में बयां करना, कहने से ज्यादा आसान होगा शायद.. तो शुरू करते हैं…. डॉ राखी शर्मा_