ये कहानी तब शुरू होती है जब सब कुछ नोर्मल था, सब लोग अपनी अपनी दुनिया में एकदम मस्त, किसी को किसी की परवाह नहीं, ऐसा लगता था जैसे हम बहुत आज़ाद पंछी की तरह हवा में उड़ रहे है जिसे न कोई रोकने वाला है न कोई पकड़ के पिंजरे में डालने वाला है, क्योकी हम इंसान है और इंसान किसी से नई डरता है, उसे उस कुदरत की परवाह नहीं जिसने उसे बनाया है, लेकिन कहते हैं वक्त सबका आता है हिसाब सबका लिया जाता है। ये एक दस्ता भी उसी इंसान से जुडी है जो हमेशा अपने आप को उस कुदरत से बड़ा मानता है।